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परमा एकादशी

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अर्जुन बोले :  हे जनार्दन ! आप अधिक (लौंद/मल/पुरुषोत्तम) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम तथा उसके व्रत की विधि बतलाइये । इसमें किस देवता की पूजा की जाती है तथा इसके व्रत से क्या फल मिलता है ? श्रीकृष्ण बोले :  हे पार्थ ! इस एकादशी का नाम  ‘ परमा ’  है । इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मनुष्य को इस लोक में सुख तथा परलोक में मुक्ति मिलती है । भगवान विष्णु की धूप ,  दीप ,  नैवेध ,  पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए । महर्षियों के साथ इस एकादशी की जो मनोहर कथा काम्पिल्य नगरी में हुई थी ,  कहता हूँ । ध्यानपूर्वक सुनो : काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का अत्यंत धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था । उसकी स्त्री अत्यन्त पवित्र तथा पतिव्रता थी । पूर्व के किसी पाप के कारण यह दम्पति अत्यन्त दरिद्र था । उस ब्राह्मण की पत्नी अपने पति की सेवा करती रहती थी तथा अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी रह जाती थी । एक दिन सुमेधा अपनी पत्नी से बोला:  ‘ हे प्रिये ! गृहस्थी धन के बिना नहीं चलती इसलिए मैं परदेश जाकर कुछ उद्योग करुँगा । ’ उसकी पत्नी बोली...

Rules for keeping Ekadashi:

Ekadashi is the 11th day of Lunar calender month in the Hindu calender system. This is a day for fasting or Upvaas .  Pujya Bapuji says that "Upvaas" means Up - Vaas i.e., to stay close to God.  Upvaas  involves fasting while observing certain rules.   The purpose of fasting is to experience peace & bliss. Eating less enables the mind & body to function more effectively.  Ekadashi days are very important & beneficial days for all householders. The rules for keeping fast/ upvaas on this day are:  1) One should not eat any cereals ("Ann" in hindi) like rice, pulses, wheat etc. & salt. 2) If possible, one should stay on water. Drinking Luke warm water or lemon-mishri (crystallized sugar) water is very good as it cleanses the hidden undigested food in the body.  3) If one feels hungry, then one can take milk or fruit. Fruit should not be eaten with milk (therefore no strawberry shake, mango shake, chickoo shake etc.). One should not ea...

वास्तविक उन्नति

(परमपूज्य बापूजी की अमृतवाणी) वास्तविक उन्नति अपने आत्मा-परमात्मा के ज्ञान से, आत्मा-परमात्मा की प्रीति से, आत्मा-परमात्मा में विश्रांति पाने से होती है | जिसने सत्संग के द्वारा परमात्मा में आराम करना सीखा, उसे ही वास्तव में आराम मिलता है, बाकी तो कहाँ हैं आराम ? साँप बनने में भी आराम नहीं, भैंस बनने में भी आराम नहीं है, कुत्ता या कलंदर बनने में भी आराम नहीं, आराम तो अंतर्यामी राम का पता बताने वाले संतों के सत्संग में, ध्यान में, योग में | वहाँ जो आराम मिलता है, वह स्वर्ग में भी कहाँ है ! संत तुलसीदास जी कहते हैं: तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिय तुला एक अंग | तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ||                                              (श्री रामचरितमानस सुन्दर कांड : ४) सत्संग की बड़ी भरी महिमा है, बलिहारी है | .... ........ आगे पढने के लिए 'ऋ...

कर्म व विचार भी पैदा करते हैं दिव्य तरंगें

कर्म व विचार भी पैदा करते हैं दिव्य तरंगें कर्म व विचार भी पैदा करते हैं दिव्य तरंगें (पूज्य बापूजी की पावन अमृतवाणी) कानपुर में एक बाई हो गयी, वृद्ध थी। स्वामी राम (जिनका देहरादून में आश्रम है) के गुरु की वह शिष्या थी। उसको गुरु का ज्ञान मिल गया था। उसका बेटा मशहूर डॉक्टर था – डॉ ए. एन. टंडन। उसने अपने पुत्र को बुलाया और बोलीः "अपने परिवार को बुलाओ, अब मैं संसार से जा रही हूँ। तुम रोना पीटना नहीं। जो जानना था वह मैंने गुरुकृपा से जान लिया है। मेरी मौत नहीं होती, शरीर बदलता है। पाँच भूतों से शरीर बना है, पाँच भूतों में मिल जायेगा। मिट्टी से घड़ा बना है और मिट्टी में मिल जायेगा, आकाश महाकाश से मिल जायेगा, ऐसे ही आत्मा परमात्मा से मिल जायेगा। तुम रोना-धोना नहीं। गुरु की कृपा से मेरी मोह-ममता मिट गयी है।" टंडनः "माँ ! तुम क्या कह रही हो ? तुम कैसे जाओगी ! हमारा रहेगा कौन ?" फिर तो माँ हँसने लगीः "बेटे ! तू अब से रो के, ʹमाँ-माँʹ करके मेरे को फँसा नहीं सकता। यह सब धोखा है। ʹयह मेरी माँ है, यह मेरा बेटा...ʹ यह सदा टिकता नहीं और...

हरि व्यापक सर्वत्र समानाः.....

हरि व्यापक सर्वत्र समानाः..... (पूज्य बापू जी की ज्ञानमयी अमृतवाणी) गुजरात में नारायण प्रसाद नाम के एक वकील रहते थे। वकील होने के बावजूद भी उन्हें भगवान की भक्ति अच्छी लगती थी। नदी में स्नान करके गायत्री मंत्र का जप करते, फिर कोर्ट कचहरी का काम करते। कोर्ट-कचहरी में जाकर खड़े हो जाते तो कैसा भी केस हो, निर्दोष व्यक्ति को तो हँसते-हँसते छुड़ा देते थे, उनकी बुद्धि ऐसी विलक्षण थी। एक बार एक आदमी को किसी ने झूठे आरोप में फँसा दिया था। निचली कोर्ट ने उसको मृत्युदंड की सजा सुना दी। अब वह केस नारायण प्रसाद के पास आया। ये भाई तो नदी पर स्नान करने गये और स्नान कर वहीं गायत्री मंत्र का जप करने बैठ गये। जप करते-करते ध्यानस्थ हो गये। ध्यान से उठे तो ऐसा लगा कि शाम के पाँच बज गये। ध्यान से उठे तो सोचा कि ʹ आज तो महत्त्वपूर्ण केस था। मृत्युदंड मिल हुए अपराधी का आज आखिरी फैसले का दिन था। पैरवी करके आखिरी फैसला करना था। यह क्या हो गया ! ʹ जल्दी-जल्दी घर पहुँचे। देखा तो उनके मुवक्किल के परिवार वाले भी बधाई दे रहे हैं, दूसरे वकील भी बधाई देने आये हैं। उनका अपना सहायक ...

भगवान ने जगत क्‍यों बनाया ?

भगवान ने जगत क्‍यों बनाया ? भगवान ने जगत क्‍यों बनाया ? ये संसार भगवान ने पुजवाने के लिये नहीं बनाया, जैसे नेता वोट बैंक के लिये अपने एरिया में घूमता है ऐसे भगवान सृष्‍टि करके अवतार लेकर वोट बैंक के लिये नहीं आते अथवा वोट बैंक के लिये भगवान ने ये सृष्‍टि नहीं बनाई । भगवान ने आपको गुलाम बनाने के लिये भी सृष्‍टि नहीं बनार्इ । भगवान ने आपको अपने अलौकिक आनंद, माधुर्य, ज्ञान और प्रेमाभक्‍ति के द्वारा अपने से मिलने के लिये सृष्‍टि बनाई । भगवान परम प्रेमास्‍पद है । बिछड़े हुए जीव अपने स्‍वरूप से मिले इसलिये सृष्‍टि है । वो सृष्‍टि में अनुकूलता देकर, योग्‍यता देकर आपको उदार बनाता है कि इस योग्‍यता का आप ‘‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’’ सदुपयोग करो और प्रतिकूलता, विघ्‍न-बाधा देकर आपको सावधान करता है कि संसार तुम्‍हारा घर नहीं है । ये एक पाठशाला है, यहां से आप यात्रा करके मुझ परमेश्‍वर से मिलने आये हो । इसलिये दुख भी भेजता है । दुख सदा नहीं रहता और सुख भी सदा नहीं रहता । धरती का कोई व्‍यक्‍ति सुख को टिकाये रखे, संभव ही नहीं । दुख को टिकाये रखो, संभव नहीं है क्‍योंकि उसकी व्‍यवस्‍था है । सुख भी आकर...

समस्त पापनाशक स्तोत्र

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भगवान वेदव्यास द्वारा रचित ' अग्नि पुराण ' में अग्निदेव ने महर्षि वशिष्ठ को विभिन्न उपदेश दियें हैं। इसी पुराण में भगवान नारायण की दिव्य स्तुति की गयी है| महात्मा पुष्कर कहते हैं कि मनुष्य चित्त की मलिनतावश चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन आदि विभिन्न पाप करता है, पर जब चित्त कुछ शुद्ध होता है तब उसे इन पापों से मुक्ति की इच्छा होती है। उस समय भगवान नारायण की दिव्य स्तुति करने से समस्त पापों का प्रायश्चित पूर्ण होता है। भगवान नारायण की दिव्य स्तुति ही ' समस्त पापनाशक स्तोत्र ' है। आगे पढ़ें के लिए क्लिक करें ... (Read more..) राधे-कृष्ण !! www.hemantdubey.com www.ramcharitmanas.in

पापमोचनी एकादशी

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  महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से चैत्र ( गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार फाल्गुन ) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की तो वे बोले : ‘ राजेन्द्र ! मैं तुम्हें इस विषय में एक पापनाशक उपाख्यान सुनाऊँगा , जिसे चक्रवर्ती नरेश मान्धाता के पूछने पर महर्षि लोमश ने कहा था । ’ मान्धाता ने पूछा: भगवन् ! मैं लोगों के हित की इच्छा से यह सुनना चाहता हूँ कि चैत्र मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है , उसकी क्या विधि है तथा उससे किस फल की प्राप्ति होती है ? कृपया ये सब बातें मुझे बताइये । लोमशजी ने कहा: नृपश्रेष्ठ ! पूर्वकाल की बात है । अप्सराओं से सेवित चैत्ररथ नामक वन में , जहाँ गन्धर्वों की कन्याएँ अपने किंकरो के साथ बाजे बजाती हुई विहार करती हैं , मंजुघोषा नामक अप्सरा मुनिवर मेघावी को मोहित करने के लिए गयी । वे महर्षि चैत्ररथ वन में रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करते थे । मंजुघोषा मुनि...

श्रीमद् भगवद्गीता - परमपूज्य बापूजी के अमृतमय वचन

श्रीमद् भगवद्गीता एक ऐसा ग्रन्थ है जो दिव्य ज्ञान से भरपूर है| इस ज्ञान रूपी अमृतपान से मनुष्य के जीवन में साहस, हिम्मत, समता, सहजता, स्नेह, शांति, सर्वजनहिताय भावना और धर्मं आदि दैवी गुण विकसित हो उठते हैं| इसके पठन व मनन से अधर्म और शोषण का मुकाबला करने का सामर्थ्य आ जाता है| गीता जयंती के अवसर पर संत शिरोमणि परमपूज्य श्री आशाराम बापूजी ने श्रीमद् भगवद्गीता पर तात्विक प्रवचन किया है| बापूजी के प्रवचनों से कुछ अमृतमय अंश प्रस्तुत है, अवलोकन व श्रवण करें: श्रीमद् भगवद्गीता का देवत्व श्रीमद् भगवद्गीता में शांति पाने के ६ उपाय श्रीमद् भगवद्गीता सार भाग - १ श्रीमद् भगवद्गीता सार भाग - २ श्रीमद् भगवद्गीता सार भाग - ३ श्रीमद् भगवद्गीता सार भाग - ४ श्रीमद् भगवद्गीता सार भाग - ५ श्रीमद् भगवद्गीता सार भाग - ६ श्रीमद् भगवद्गीता सार भाग - ७ सादर, हेमंत कुमार दुबे www.hemantdubey.com www.ramcharitmanas.in

अमृत वर्षा

संतों की वाणी अमृत सामान होती है और जन कल्याणकारी होती है | प्रस्तुत वीडियो में परम पूज्य संत शिरोमणि श्री आशाराम बापू जी की वाणी से बरसते अमृत तुल्य वचनों के श्रवण से जीवन को पावन करते हुए एक नयी दिशा प्राप्त करें और आनंद का अनुभव करें | देखें : सादर, हेमंत कुमार दुबे www.hemantdubey.com www.ramcharitmanas.in